मनु के वंश को बचाइए
वैदिक पंचचामर छंद
बसात में जहर घुला मिला जहान में यहां
अभी पसारता दिखा कराल काल भाल को।
इधर उधर जिधर भी देखिए नजर को फेर कर
सजा रहा है मृत्यु दूत रक्त लाल थाल को।
चमन मिला डरा डरा कली मिली मरी पड़ी
मतंग नृत्य मृत्यु की खुमार से भरी हुई
पराग राग गा रहा अशेष वेदना भरी।
पड़ी हुई यहां वहां चिता मिली सड़ी हुई।
दिखा पुकराता हुआ अधर इधर उधर यहां
कराहती हुई निशब्द खंग हैं यहां वहां।
शहर शहर मचा कहर उदंड दंड दे रहा
प्रचंड दृश्य देख देव दंग हैं यहां वहां।
उतंग मृत्यु हो चुकी प्रचंड दृश्य देखिए
उदंड काल खंड में जिवंत दृश्य ध्वंस का।
निशान है विकट पड़ा हुआ सदी के वक्ष पर
विहीन ऋण तोड़ती है बंध आत्म वंश का।
नया विकल्प खोजिए नया विधान सोचिए
समय विकट हुआ यहां कराहती है भारती।
सनक रहा पवन यहां उगल रहा जहर यहां
उफन उफन के सिंधु गंग कृष्ण को पुकारती।
जगाइए जगाइए सुसुप्त राम श्याम को
विरह नहीं सहे युगल कि हंस को बचाइए।
तो साथ हम बढ़े चलें प्रशस्त अग्नि पंथ पर
शिकार हो रहे मनु के वंश को बचाइए।
©®दीपक झा "रुद्रा"❤️
Shrishti pandey
16-Dec-2021 03:00 PM
Waah waah kya baat hai
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दीपक झा रुद्रा
16-Dec-2021 08:00 PM
आत्मीय आभार🙏
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Abhinav ji
16-Dec-2021 12:13 AM
सुंदर अति सुंदर
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दीपक झा रुद्रा
16-Dec-2021 08:01 PM
आत्मीय आभार
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Niraj Pandey
15-Dec-2021 11:38 PM
वाह बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां👌👌
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दीपक झा रुद्रा
16-Dec-2021 08:01 PM
आत्मीय आभार
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